Saturday, April 7, 2018

ऊखल, मूसल और घट्टी

गाँव के घर के आँगन में
उपेक्षित पड़ा है ऊखल 
पास पड़ा है मूसल 

रसोई के बरामदे में
एक कोने में
उपेक्षित पड़ी है घट्टी

कभी घर की औरतें
कूटती थी खिचड़ा
ऊखल-मूसल से

मुँह अँधेरे उठ कर
पाँच सेर बाजरी 
पीसती थी घट्टी से

अब बड़े शहरों में 
इन्हें दिखाया जाता है
"पधारो म्हारे देश"
जैसे प्रोग्रामों में

ताकि आज की पीढ़ी
एक बार देख सके
लुप्त होती धरोहर को

अनुभव कर सके
अपने पूर्वजों के
कठिन परिश्रम को।


( यह कविता "स्मृति मेघ" में प्रकाशित हो गई है। )



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