Monday, January 23, 2017

जीवन बे-राग री

झाँझर नैया
डाँड़ें टूटना
राहे सफर
अकेले चलना
साथ छूटा, राह भुला, मुश्किल हुई  मंजिल री।
मधुऋतु बीती, पतझड़ आया, जीवन बेराग री।

तनहा रहना
जुदाई सहना
घुट-घुट जी
टूट-टूट बिखरना 
उदासी छाई, आँखे भर आई, मिटा अनुराग री।
मधुऋतु बीती, पतझड़ आया,  जीवन बेराग री।

निष्प्राण जीवन
गमों को सहना
विरह के आँसूं
अरमां बिखरना
साज टूटा, स्वर रूठा, अब गीत बना बेराग री।
मधुऋतु बीती, पतझड़ आया, जीवन बेराग री।

चिर वियोग
जीवन में सहना
व्याकुल ह्रदय
यादों में रहना
ख़्वाब आया, दीदार हुवा, सपना प्यारा टुटा री।
मधुऋतु बीती, पतझड़ आया, जीवन बेराग री।


( यह कविता "स्मृति मेघ" में प्रकाशित हो गई है। )

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