Wednesday, April 27, 2016

सुबह का सपना

लोग कहते हैं
सुबह का सपना
सच होता है

आज मैंने तुम्हें
सुबह के सपने में
देखा

एक संदली सुगंध
फ़ैल गई थी चहुँ
ओर

मेरे दिल का चमन
खिल उठा था
तुम्हें देख

एक अजीब सा
सुकून था
तुम्हारे चहरे पर

सदा की भांति
चमक रही थी
तुम्हारी आँखें

हँसते - हँसते तुम
कर रही थी
मुझसे बातें

अचानक चार बजे
घड़ी का अलार्म
बज उठा

आँखें खुल गई
नींद उचट गई
सपना टूट गया

काश ! लोगो का कहना
सच हो जाए
आज मेरा भी
सुबह का सपना
सच हो जाए।



  [ यह कविता "कुछ अनकही ***" में प्रकाशित हो गई है। ]

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