Friday, June 12, 2015

प्यार भरे पैगामों में

एक दिन तुमने कहा था--
मुहब्बत कब मरी है,
वह तो मरने के बाद भी
अमर रही है

सदियाँ गुजर गई
लेकिन ताजमहल में
मोहब्बत आज भी ज़िंदा है
हीर-रांझा, लैला-मजनू का प्यार
दुनियाँ में आज भी अमर है

आज जब भी
मैं तुम्हारी तस्वीर देखता हूँ
मुझे सर्दियों की गुनगुनी धूप सा
दिल में अहसास होता है

मैं खो जाता हूँ
तुम्हारे गुलाबी नरम सपनों में
रुबरु कराती है तुम्हारी यादें
जैसे तुम बसी हो मेरे दिल में

तुम आज भी जीवित हो
मेरे मन के किसी अदृश्य कोने में
सितारों पर लिखे प्यार भरे पैगामों में

तुमने ठीक ही कहा था
मोहब्बत कब मरी है
वह तो मरने के बाद भी
सदा अमर रही है।




                                                 [ यह कविता "कुछ अनकहीं " में छप गई है।]














No comments:

Post a Comment