Monday, May 11, 2015

कुछ अनकही ....


गुलमोहर की छाँव तले
मैं आज लिखने बैठा
   कुछ अनकही .... 

चमकते जुगनू
दिखाते रहे प्रेम-भाव 
       लिखने कुछ अनकही .... 

चाँद की चाँदनी 
छिटकती रही रात भर 
      लिखते कुछ अनकही .... 

नन्हें सितारे 
बिखेरते रहे दूधिया रोशनी 
          लिखने कुछ अनकही ....     

समूची कायनात 
 दे रही थी साथ
             लिखने कुछ अनकही ....  

मैं हथेली पर
नाम लिखता रहा
बातें याद करता रहा
   जो रह गई कुछ अनकही ...






(यह कविता पुस्तक "कुछ अनकही".....  के पिछले पृष्ठ पर छप गई है।  )















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