Sunday, December 28, 2014

गांव की औरत

गांव की औरत
शहरी औरतों की तरह
होटलों में खाना पसंद नहीं करती है

वो अपने घर में बनाया
खाना खा कर ज्यादा संतुष्टी का
अनुभव करती है

वो शहरी औरतों की तरह
बचे खाने को डस्टबीन में
नहीं फेंकती है

वो बची दाल से परांठे
और खट्टे दही से कढ़ी
बना लेती है

वो शहरी औरतों की तरह
अपनी लम्बी काली चोटी को
भी नहीं कटवाती है

वो अपनी भौहें नहीं नुचवाती
क्रीम पावडर से चहरे को भी
नहीं पुतवाती है

फिर भी वो शहर की
किसी कमसिन औरत से
कमतर नहीं लगाती है।  









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