Thursday, October 30, 2014

एक बार लौट आओ



रंग बिरंगी तितलियाँ
आज भी पार्क में
उड़ रही है 

गुनगुनी धुप आज भी 
पार्क में पेड़ों को
चूम रही है 

फूलों की खुशबु आज 
भी हवा को महका 
रही है

कोयलियाँ आज भी
आम्र कुंजों में
गीत गए रही है

हवा आज भी
टहनियों की बाँहे पकड़
रास रचा रही है

लेकिन तुम्हारी
चूड़ियों की खनक आज
सुनाई नहीं पड़ रही है

तुम्हे मेरी कसम
मेरे हमदम
एक बार लौट आओ

अपनी चूड़ियों की
खनक एक बार फिर से
सुना जाओ।


                                  [ यह कविता "कुछ अनकहीं " में छप गई है।]









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