Sunday, July 27, 2014

अप्रत्यासित मिलन

तुम से बिछुड़े हुए
आज पन्द्रह दिन हो गए,
आये हुए बन्धु -बांधव भी
घरों को लौट गए

तुम्हारी मुँह बोली बहन
फ्रांसिस स्टुवर्ड अभी यहीं है
वो थोड़े दिन सब के साथ
रहना चाहती है

आज शाम उसने मुझे
बाहर घूमने के लिए कहा,
मेरा मन नहीं था लेकिन उसके
आग्रह को टाल भी नहीं सका

हम उसी पार्क में चले गए
जहाँ तुम रोज घुमा करती थी
उस बैंच पर भी बैठे
जहां तुम बैठा करती थी

घूमते-घूमते अचानक
हमारे सामने एक
विद्युतकणों का पुंज
साकार हो गया,
मेरे सारे शरीर में
एक ठंडी लहर सी दौड़ गयी
मैं पसीने से तर-बतर हो गया

फ्रांसिस ने मुझसे कहा--
आत्माऐं इस माध्यम से
अपनी उपस्थिति दर्ज कराती है
आप भाग्यशाली है
आज पन्द्रहवें दिन वह आपसे
विदा लेने आई है

आइये हम दोनों
उनकी मंगल कामना के लिए
प्रभु से प्रार्थना करें
आज ख़ुशी मन से
उन्हें हम विदा करें।




फरीदाबाद
२० जुलाई, २०१४



फ्रांसिस स्टुवर्ड पिट्सबर्ग (अमेरिका) में रहती है। वह मेरी स्वर्गीय धर्मपत्नी सुशीला कांकाणी की मुँह बोली बहन है। धर्म से वो क्रिश्चियन है, लेकिन बौद्ध धर्म में आस्था रखती है।  जहां आत्मा और परमात्मा के रिश्ते को बहुत गहराई से समझा जाता है। उसकी बेटी नैगली स्टुवर्ड अमेरिका में बौद्ध धर्म पर रिसर्च कर रही है। उसने मुझे बताया कि सुखी आत्माएँ धरती पर अपने प्रियजनों से मिलने आती है और समय-समय पर जीवात्मा जगत से
सुक्ष्म तरंगों के माध्य्म से सन्देश भी भेजती रहती है।  


                                                      [ यह कविता "कुछ अनकहीं " में छप गई है।]


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