Monday, March 10, 2014

दिल में बसा है गांव

पचास वर्ष बीत गए
छोड़े हुए गांव,
लेकिन आज भी दिल में
बसा हुवा है गांव

उस समय गांव में केवल
बैल गाड़िया चला करती
बहुत दूर कच्ची सडक पर
दो-चार बसे मिलती

 पांच मील दूर जाकर
ईन्तजार करना पड़ता
तभी जा कर कोई
बस में चढ़ पाता

 जब भी मेहमन आता
मौहल्ला खड़ा हो जाता
दूध-दही से घर भर जाता
गांव मिलने पहुँच जाता

शाम पड़े पूरा मोहल्ला
रेडियो सुनने आ जाता
देर रात तक अलाव के पास
खूब बातो का दौर चलता

बेटे-बेटियों के विवाह में
गाँव ख़ुशी में डूब जाता
गांव में बेटी -बहु को
इज्जत से देखा जाता

गणगौर के मेले में
बैलो को दौड़ाया जाता,               
होली में गले मिल कर
प्यार से रंग लगाया जाता

पचास वर्ष बीत गए
छोड़े हुए गांव
लेकिन आज भी दिल में
बसा हुवा है गांव।


[ यह कविता "एक नया सफर " पुस्तक में प्रकाशित हो गई है। ]

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