Wednesday, January 22, 2014

बुढ़ापे का दिन

रोज सुबह
अपने चहरे को
समाचार पत्र से
ढक लेता है बुड्ढ़ा

कईं बार पन्नों को
उलट-पुलट कर
एक-एक अक्षर को
पढ़ता है बुड्ढ़ा

सोने से पहले 
रख देता है समेट कर
महीने के आखिर में कब्बाडी को 
बेचने के लिए बुड्ढ़ा

रात को करवटे बदलता हुवा 
इन्तजार करता है
नयी सुबह के नये समाचार पत्र का 
फिर से बुड्ढ़ा। 






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