Wednesday, August 7, 2013

गर्मी रो दिन (राजस्थानी कविता )

जेठ-असाढ़ रै महीना में
घड़ी-दो घड़ी दिन कौनी चढ़ै
जताने तो तपबानै
लाग जावै सूरज


दस बज्यां ही घर सूं बारै
निकळबो होज्या मुसकिल
आभा सूं बरसावण लागै
खीरा सूरज


दोफारी मांय चालै लूवां
गली में बैठा कुता हुळक ज्यावै
अर सड़कां पर पड्यो डामर
पिघल ज्यावै।

बळतो बायरो चैपै
ताता चींपिया डील माथै
गाभा करण लाग ज्यावै चप-चप
पसेवो बैवै जाणै  न्हार निकल्यो हुवै


दिन आंथै कौनी
बिउं पैली आ ज्यावै
बाळणजोगी आँधी अर
करद्ये टापरा रो सत्यानाश


रात बापड़ी ठंडी हुवै
जणा जा"र थोड़ी शांती मिलै
पण दिन उगता ही सूरज फेरूं
तपबाने लागज्यावै लगाद्ये गळपांश।


[यह कविता "एक नया सफर" नामक पुस्तक में प्रकाशित हो गई है। ]



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