Tuesday, August 28, 2012

भीगने का सुख

सुबह हम सब
विक्टोरिया में घूम रहे थे
अचानक आकाश काले
बदलो से ढक गया।

बिजलियाँ चमकने लगी
तेज हवाए चलने लगी
सभी बोले जल्दी चलो
मौसम बदल गया।

बाहर आते -आते
वर्षा शुरू हो गयी
भीगते हुए बाहर निकले
देखा मनोज नहीं आया।

सभी भीगते हुए
मनोज का इन्तजार
करने लगे थोड़ी देर बाद
मनोज भी आ गया।

पूछा- कहाँ रह गए थे
हम सब कब से तुम्हारा
इन्तजार कर रहे है
सब कुछ भीग गया।

वो सहज भाव से बोला-
वो छाता लिए खड़ी  थी
मेरा मन उसके छाते के निचे
भीगने का हो गया।

कनखियों से झांकते
नरेन्द्र जी गुनगुना रहे थे
हम थे वो थी और समां रंगीन
मन भी मचल गया।

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