Friday, January 14, 2011

बादल आये




                                     

बादल आये  बादल आये, 
रंग - रंगीले  बादल आये। 

गड़-गड़ करते सोर मचाते,
मानो   घोड़े नभ  में उड़ते। 

गोरे  बादल, काले  बादल, 
पानी  है  बरसाए   बादल। 

चम-चम बिजली चमकाए,
धुड़ूम-धुड़ूम पानी बरसाए। 

जीवनदायी जल  बरसाते,
नहीं किसी को ये तरसाते। 

बरसाते ये नभ से मोती,
चाँदी जैसा बहता पानी |

महक उठी धरती से सोंधी,   
हवा  हो  गई  ठंडी - ठंडी |

जंगल में मंगल हो  जाए,
बादल  जब पानी  बसाए | 

कोलकत्ता
१४ जनवरी, २०११
(यह कविता "कुमकुम के छींटे" नामक पुस्तक में प्रकाशित  है )


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