Tuesday, February 17, 2009

सत्ता का हस्तांतरण

बहू ने
सास की थाली में
घी से चुपड़ी चपाती
को रखा

प्यार से कहा -
खाइए !
थक गई तो
लोग कहेंगे
बहू ने सास को
ठीक से नही रखा

सास के
मुँह में जानेवाला ग्रास
हाथ में ही थम गया

आज अचानक
सास को वास्तविकता
का ज्ञान हो गया

कल तक
सास जो बहू को
अपने पास रखने का
दम भर रही थी

आज बहू
उसे अपने पास रखने
का एहसास दिला रही थी 

शब्दों के
बोल में ही सब कुछ
बदल गया था

अनजाने  में ही
शान्ति से
सत्ता का हस्तांतरण 
हो गया था।



कोलकत्ता
१७ फ़रवरी, २००९

(यह कविता  "कुमकुम के छींटे" नामक पुस्तक में प्रकाशित है )

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