Monday, December 29, 2008

इतिहास



इतिहास
बहुत पढ़ चुके
अब इसे पढ़ना छोड़ो 
और स्वयं इतिहास का
सर्जन करो 

जिससे
आने वाली पीढ़ी
पढ़ कर तुम पर
गर्व कर सके

जिंदगी तो
बिखरे दानो की तरह है
कुछ तो पंछी चुन गए
कुछ शेष बची है

कहीं ऐसा न हो  कि
घर आया इतिहास  का मेहमान
तुम्हारे यहाँ से
खाली हाथ चला जाए 

और तुम्हारा नाम
इतिहास के सुनहरे पन्नों पर
अंकित होने से ही रह जाए। 
    
(यह कविता "कुमकुम के छींटे" नामक पुस्तक में प्रकाशित है )

सेन डिएगो  (अमेरिका )
२९ दिसम्बर, २००८ 

 

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